पशुओं और मनुष्यों का साथ आज से लगभग 12 से 14 हजार वर्ष पूर्व शुरू हुआ। इस काल में श्वान, भेड़, बकरी और शुकर पालन के प्रमाण मिलते हैं।
5 से 6 हजार वर्ष पूर्व घोड़ों/गधों का उपयोग माँस और परिवहन के लिए किया जाने लगा। इसी समय भारत और चीन में गौवंश, भैंस का उपयोग दूध उत्पादन और खेती के लिए प्रारंभ हुआ।
मध्य काल/आधुनिक काल में पशुपालन के अनेक स्वरूप जैसे गौ/ भैंस/ भेड़/ बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, मुर्गीपालन, बतख पालन, शुकर पालन, खरगोश पालन आदि विकसित हुआ। पशुपालन मुख्य तौर पर माँस, दूध, अंडा, ऊन, चमड़ों, परिवहन, कृषि एवं सुरक्षा आदि के लिए किया जाने लगा।
किसान मित्रों, वास्तव में पशु पालन इस प्रकार का हो जिसमें मनुष्य और पशु एक दूसरे की अस्तित्व की रक्षा करे, न की नष्ट करें।
कृषि की दृष्टि से गौवंश व भैंस पालन बहुत ही उपयोगी है। क्योंकि इनसे दूध, दही, छांछ, मक्खन, घी प्राप्त होता है। और साथ इनसे प्राप्त गोबर, गोमूत्र, दूध, छांछ से उन्नत जैविक खाद एवं कीट रोग नियंत्रक बनते हैं।
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