भूमि शोधन फसल में आने वाली भूमि जनित बीमारी और कीटो से बचाव के लिए किया जाता है । यह जैविक और रासायनिक खेती करने वाले दोनों लोगो के लिए लाभकारी है। क्योकि भूमि जनित रोग दोनों तरह की खेती में आते है ।
लेकिन जैविक खेती करने वालो का भूमि शोधन किये बिना फसल नहीं उगानी चाहिए।
रासायनिक खेती करने वालो के लिए फसल की बीमारी का उपचार करने के अनगिनित जहर(साधन) हे । लेकिन जैविक में बचाव ही सबसे महत्वपूर्ण उपचार है।
जैविक तरीके से भूमि शोधन करने के लिए बहुत सारे विकल्प मौजूद है । यहाँ पर हम उनमे से कुछ विकल्पों पर बात करेंगे ।
1)ट्राइकोडर्मा -ट्राइकोडर्मा की कई प्रजातियां हे लेकिन दो प्रजातियां से भूमि शोधन किया जाता है (!) ट्राइकोडर्मा विरडी (!!) ट्राइकोडर्मा हरजेनियम
भूमि में फफूंद जनित लगभग 80% और हवा जनित 5% बीमारियों की रोकथाम करता है इसके लिए दोनों में से कोई भी ट्राइकोडर्मा का प्रयोग आप भूमि उपचार में कर सकते हो
लेकिन अगर जलवायु शुष्क हे या फसल लंबे समय की हे तो ट्राइकोडर्मा हरजेनियम का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह प्रजाति विकट परिस्तिथियों में भी सर्वाइब कर जाती है
धान की बकानी रोग के लिए भी हरजेनियम विरडी से अच्छा रहता है।
2) सुडोमोनाश — सुडोमोनाश का प्रयोग सभी फसलो में करना चाहिए लेकिन सब्जी वाली फसलों में सुडोमोनास से भूमि शोधन फसल के लिए वरदान से कम नहीं है।
सुडोमोनास सूत्रकृमि (निमोटोड)वाइरस जनित बीमारी फसल के इम्यून पावर(प्रतिरक्षा तंत्र) को मजबूत करने फास्फेट को घुलनसील बना कर फसल को देने और ग्रोथ प्रमोटर का के लिए सुडोमोनास से भूमि शोधन उत्तम हे।
3)बबेरिया बेसियांना: यह एक परजीवी फग्स हे जो कीट के ऊपर चपक कर खुद को डेवलप करती है इस लिए जहाँ पर भूमि जनित कीटो (दीमक, व्हाइट ग्रब,स्पोड़ो ऑप्ट्रा ) जैसे कीटो की समस्या आती है वहां इसका प्रयोग भूमि शोधन में करना चाहिए।
4) मेटाराइजिम: यह भी बेविरिय की तरह फंगस हे जो भूमि जनित कीटो को नष्ट करता है लेकिन यह भूमि जनित स्पोड़ो ऑप्ट्रा को नियंत्रित नहीं करता।
उपरोक्त सभी का प्रयोग करने का तरीका एक जैसा ही होता है लेकिन अगर सभी को एक खेत में डालना हो तो एक दूसरे को डालने में 16 से 24 घण्टे का अंतर रखें।
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