400 ग्राम टमाटर के बीज को एक कपड़े में बाँधकर छोटी थैली जैसे बनाना बनाने के बाद 425 मि.लि. पानी में 75 मि. लि. दूध मिला लीजिये। उसके बाद इस घोल को 6 घण्टे भिगोके रखना चाहिए 6 घण्टे के बाद इस थैली को निकालकर बीज को खेत में बोना चाहिए। यह प्रयोग रोगाक्रमण को रोकता है और अंकुरण को बढ़ाता है। बीजामृत निर्माण पहले बीज के लिए बीजामृत का प्रयोग करें।
बीजामृत में 1. गाय का गोबर – 5 किलो
2.गो मूत्र– 5 लिटर
3.कली चूना– 250 ग्रामपानी– 20 लिटर
24 घंटे इन्हें मिलाकर तीन चार बार हिला दें, बीजामृत तैयार है। इसमें बीज को डुबोकर निकालकर छाया में सुखा दें और खेत में बीज दें। पौधों की भी जड़े बीजामृत में डुबोकर खेत में लगाऐं। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट वास्तव में प्रकृति द्वारा बनाई गई खाद्य श्रृंखला का ही भाग है चूंकि ये हमारे द्वारा लगाई जाने वाली फसल को नुकसान पहुंचाते है अतः ये शत्रु कीट होते है। कीटों के प्रकोप होने के भी वहीं कारक होते हैं जो रोगों के लिये होते है अर्थात पौधे व भूमि में जल और पोषक तत्वों में असंतुलन और पौधों में कीट प्रतिरोधकता का कम होना तथा एक ही फसल बार-बार लेना । वास्तव में इन सभी कारकों को बढ़ावा देने वाला मुख्य कारण है रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तथा एक ही फसल लगातार लेना। इसके जो रासायनिक कीटनाशक इन्हें मारने के काम में लिये जाते है उनका कुल छिड़काव का 5-10 प्रतिशत ही इन्हें मारने के काम आता है और शेष 90-95 प्रतिशत पौधों और पर्यावरण में रह जाता है जो कि सभी जीवों जिनमें हम भी शामिल है खाद्य के द्वारा शरीर में पहुंचता रहता है।अतः सबसे अच्छा तरीका यह है जिसमें कीटनाशकों के प्रयोग किये बगैर ही इन कीटों की संख्या भी नियंत्रित हो जाये और खाद्य श्रृंखला भी बनी रहे। इसके लिये चारों तरफ से समन्वित प्रयास एक साथ करने चाहिये।
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