आवश्यक सामग्री :- 1 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गाय या बैल या ताजा गोबर, 250 मिली लीटर दूध, 25 ग्राम कली का चूना, आधा किलो मेड़ पर की मिट्टी, 5 लीटर पानी।
बनाने की विधि :- इन सभी सामग्री को किसी पुराने मटके में मिलाकर, मटके को मिट्टी के ढक्कन से ढांककर 2 दिन के लिये रखतें है। इससे उत्तम बीजोपचार कल्चर तैयार होता है। बीजामृत का उपयोग बनने के बाद 2 से 3 दिनों में कर लेवें। अगर आप 48 घंटे में बीजामृत का उपयोग नहीं कर पाए हो तो इसे ठंडी जगह पर रखकर 7 दिन तक भी उपयोग में ले सकते है।
उपयोग :- किसी भी फसल के बीजों को बोने से पूर्व तैयार बीजामृत कल्चर से इस प्रकार उपचारित करें, जिससे कल्चर का बीजों पर केवल हल्का आवरण हो जाये। उपचारित बीजों को छायादार स्थान में रखकर सुखायें व उसी दिन बोनी करें। आलू, , हल्दी, अदरक आदि को एक बांस की टोकरी में लेकर बीजामृत घोल में 5 मिनट के लिए डुबोये। इससे गन्ना, बीजों का अंकुरण अच्छा होता है व पौधा रोगमुक्त, स्वस्थ्य बनता है।
वैज्ञानिक तथ्य :- बीजामृत में अनेक मित्र जीव जैसे ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास आदि प्रजाति के जीवाणु तैयार होते हैं, जो शत्रु रोगकारी जीवों को नष्ट करते हैं। साथ ही इनसे फॉस्फोरस उपलब्धता और इन्डोल एसिटिक एसिड, जिबरेलीक अम्ल जैसे वृद्धिकारक हार्मोन का उत्पादन होता है। दूध, चूने में कैल्शियम होने से सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है।
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