खेती की शुरूआत बीज से होती है और बीज पर ही समाप्त होती है (बीज ही बोया जाता है और बीज ही उत्पादित होता है) अर्थात बीज खेती का सबसे महत्वपूर्ण आधार है यदि बीज उत्तम है तो जुताई, सिंचाई निराई गुड़ाई सभी का प्रभाव देखने को मिलेगा, अन्यथा सभी खर्चे व मेहनत से सिर्फ कर्ज और निराशा के अलावा कुछ नहीं मिलता है। आज की खेती से किसानों का मोह भंग होने का कारण बीज ही है क्योंकि वर्तमान में किसान के पास अपना बीज तो है नहीं और बाजार में मिलने वाले बीज को बहुत सा उर्वरक कीटनाशक व सिंचाई देने पर ही पैदावार ठीक मिलती है जिससे खेती और प्रकृति का अटूट रिश्ता समाप्त हो रहा है, दूसरे खर्च की अधिकता के अधिक उपयोग से भूमि व किसान दोनों कंगाल हो रहे है। स्वाद व गुण के साथ -साथ पैदावार भी बहुत कम होते हैं। अब जबकि संकर बीजों की यह असलियत सामने आ गई है। तो बीज रुपाम मे जीन की हेरफर से बीज बनाना शुरू कर दिया है जिसमें सबसे प्रचलित बीज संकर बीज से भी ज्यादा हानिकारक साबित होंगे क्योंकि संकर बीज तो हानि पहुंचाते है किन्तु ये जीन की हेरफेर से बने (जी. एम.) बीज सम्पूर्ण वन जगत के अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं इन्हें “संकट” बीज कहना उचित रहेगा।बीज को खेतों मे लगाकर खेत में दूसरे के पानी व पशुओं को रोक सकता है किन्तु हवा को रोकना संभव नहीं है। जिसके साथ इन जी. एम. फसलों के परागकण दूसरे फसलों तक फैलायेंगे इन फसलों से मिलने वाले चारे व अन्न के उपभोग से होने वाली हानियों का धीरे-धीरे प्रकाश में आ रहा है। इन जी.एम फसलों में सबसे बड़ा संदेह का कारण वह जीन होता है जो दूसरे जीवन से इन फसलों में किसी विशेष उद्देश्य जैसे रोग-कीट निरोधकता के लिये प्रायप्त कराया जाता है किन्तु इस जीन का पौधे के अन्य गुण पर एवं वातावरण पर क्या प्रभाव होगा सभी बताने से बच रहे है अर्थात सब कुछ ठीक नहीं है अतः अब एक किसान नहीं सम्पूर्ण गाँव लेकर देश तक को स्वयं का बीज बनाने की शुरूआत बिना विलम्ब के कर देनी चाहिये। स्वय बीज बनाने के लिये जैविक तरीके अपनाना उचित है जिसके कई लाभ है।


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