रासायनिक खेती किस प्रकार मानव जाति के लिए खतरा है ?

बहुत दुख के साथ आज मै आप लोगो को यह बताने जा रहा हूँ कि आज जीतने भी किसान हैं वो प्रकृतिक खेती छोड़कर रासायनिक खेती कर रहे हैं। कुछ दशक पहले तक प्रकृतिक खेती अर्थात जैविक खेती हुआ करती Read more…

महागुरु sph प्लस किस प्रकार गर्म जलवायु के सेव के पौधे के लिए लाभकारी है ?

चूंकि गर्म जलवायु के सेब का पौधा( anna apple plant,Dorsett golden apple plant ,michel apple plant ) सभी वातावरण मे नहीं पनप सकता है और हमारे लिए यह एक चुनौती से कम नहीं है, लेकिन आज मैं आप सबको इस Read more…

तेल प्रदूषण : –

मूंगफली, कपास, पॉम, राइस ब्रान, सरसों आदि फसलों के उत्पादन में उर्वरकों की तुलना में कीट-रोगनाशी का उपयोग अधिक होता है। इसके साथ ही रसायनों के उपयोग से अनेक खाध तेलों का परिशोधन भी किया जाता है। बी. टी. कपास Read more…

दलहन प्रदूषण : –

अरहर, मूंग, उरद और चना ये दलहन फसलें हमारे आहार का हिस्सा होती है। इनके उत्पादन में उर्वरकों की तुलना में कीटनाशियों का उपयोग अधिक होता है, जिससे दलहन में भी कीटनाशक के अवशेष आ जाते हैं। इसी तरह बाजार Read more…

अन्न प्रदूषण : –

मित्रों, आज हमारे आहार का बड़ा भाग चावल और गेहूँ का होता है। अनाजों में विशेषक धान की खेती में बहुत अधिक रसायनों (उर्वरक, कीट/रोग/चारानाशी) का उपयोग किया जाता है। आज देश से बासमती का निर्यात जहरीले रसायनों के अवशेष Read more…

फल प्रदूषण : –

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज देश में व्यावसायिक खेती के चक्र में आम, अंगूर, अनार, तरबूज, केला, सेवफल आदि फलों के उत्पादन में बहुत अधिक जहरीले रसायनों (उर्वरकों, कीटनाशी, फफुन्दनाशी) का उपयोग किया जा रहा है। उत्पादन के अलावा Read more…

दूध प्रदूषण : –

भारत सरकार ने स्वयं माना है कि देश में मिलने वाला 62 प्रतिशत दूध नकली है। ये नकली दूध यूरिया, पशु चर्बी आदि के द्वारा गैरकानूनी तरीके से बनाया जाता है। दुग्ध उत्पादन में आज भी कई उत्पादक प्रतिबंधित ऑक्सीटोसिन Read more…

जल प्रदूषण : –

रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से भूजल, पानी में नाइट्रेट, भारी तत्व जैसे लेड, कैडमियम, आर्सेनिक का स्तर बढ़ जाता है। नाइट्रेट मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसे ब्लू बेबी रोग, कैंसर रोग का कारक माना गया है। इसी Read more…

चाय प्रदूषण : –

हमारे सुबह की शुरूआत चाय की चुस्कियों से होती है। पर क्या आप जानते हैं कि चाय के बागानों में अनेक प्रकार के कीट व रोगनाशकों का उपयोग किया जाता है। वर्ष 2014 में एक स्वयं सेवी संस्था ने देश Read more…

रेशेदार फसल प्रबंधन : –

कपास में सुबह का ओसकाल निकलने के बाद चुनाई करने पर नमी रहित कपास मिलेगा। चुनाई करते समय सावधानी रखें कि पत्ती या अन्य कचरा नहीं आ सके। पूर्ण रूप से विकसित डेंडुओं की चुनाई करें चुनाई करते समय सिर Read more…

फल एवं सब्जियां प्रबंधन : –

सब्जियों एवं फलों की समय पर तुडाई करें अन्यथा वे कड़क एवं बेस्वाद और बदरंगी (दिखने में खराब) हो जाते हैं। इसकी तुड़ाई सुबह या शाम के समय कर। तुड़ाई हेतु कुशल मजदुर होने चाहिए। तुड़ाई के समय कोई कट Read more…

खलियाँ : –

बीजों से तेल निकालने के बाद बचा ‘भाग, खली कहलाता है। ये खलियां भी जैविक पौध पोषण में सहयोगी होती हैं। खलियों में नाइट्रोजन के अलावा कुछ मात्रा में फॉस्फोरस और पोटॉश भी होता है। इनके जड़ क्षेत्र में उपयोग Read more…

भेड़ अथवा बकरी लेंडी की खाद : –

औसतन इस खाद में 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 2 प्रतिशत पोटॉश की मात्रा होती है। पके खाद को चूरा कर बोनी के समय देने पर अथवा पौधे के पास देने से उत्तम परिणाम मिलते है। फसल की Read more…

प्रेसमड खाद : –

चीनी मिलों से निकले गन्ने के इस अवशेष को प्रेसमड कहते है। इस प्रेसमड को एक महीने तक मटका खाद की मदद से विघटित कर तैयार करें। इस खाद में 1.25 प्रतिशत नाइट्रोजन, 3.8 प्रतिशत फॉस्फोरस, 1.4 प्रतिशत पोटॉश एवं Read more…

पशु समाधि खाद : –

प्राकृतिक रूप से मृत गाय/ बैल/ अन्य पशु के शरीर को खेत के किसी हिस्से में वांछित लंबाई, चौड़ाई एवं गहराई के गड्ढे में रख देते है। इस गड्ढे में मृत शरीर पर 7 किलो चूना तथा 10 किलो खड़ा Read more…

जैविक खेती में मिट्टी परीक्षण के सही मायनें : –

सही मायनों में जैविक खेती में मिट्टी परीक्षण में केवल जैविक/ ऑर्गेनिक कार्बन तथा पी.एच. मान (अम्ल क्षार तुल्यांक) महत्वपूर्ण है जो भूमि की सजीवता अर्थात उर्वरता का आधार है। वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते है कि भूमि उर्वरता का Read more…

समस्याग्रस्त भूमि : –

आमतौर पर आदर्श भूमि की अम्लीयता क्षारीयता या पी. एच. मान. 6.5-7.5 के मध्य होता है। किसी भूमि में प्राकृतिक चट्टान / बेड रॉक के कारण या अधिक गहराई से पानी निकालकर देने से या सिंचाई जल के असंतुलित उपयोग Read more…

सिंचाई जल की गुणवत्ता : –

किसान मित्रों,  सिंचाई जल की गुणवत्ता फसलोत्पादन को बहुत प्रभावित करती है। यह जल में विलेय कैल्शियम,  मैग्नीशियम,  सोडियम,  पोटेशियम,  क्लोराइड,  कार्बोनेट आदि लवणों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। इन विलेय लवणों के सांद्रण को विद्युत चालकता के रूप Read more…

प्रसंस्करण उद्योग : –

हमने यह पाया है कि अनेक जैविक किसान केवल एक फसल जैसे धान,  गेहूँ,  गुड़ आदि की मार्केटिंग तो करते है परन्तु उन्हें बेचने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। यदि किसान प्रोड्यूसर कंपनी / स्वयं सहायता समूह / Read more…

नर्सरी प्रबंधन : –

कुछ फसलों जैसे धान और कुछ सब्जियों की रोप तैयार कर खेत में लगायी जाती है। मजबूत और निरोगी रोप अच्छे उत्पादन का आधार है। स्वस्थ रोप तैयार करने हेतु आवश्यक बातें : पौधशाला (रोपणी) के लिये स्थान का चयन Read more…

बीजोपचार ( बीजामृत से बीज का टीकाकरण) : –

आवश्यक सामग्री :- 1 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गाय या बैल या ताजा गोबर, 250 मिली लीटर दूध, 25 ग्राम कली का चूना, आधा किलो मेड़ पर की मिट्टी, 5 लीटर पानी। बनाने की विधि :- इन सभी सामग्री को Read more…

जैविक आहार का महत्व : –

अनेक अनुसंधानों से यह अब स्पष्ट हो गया है कि जैविक कृषि पद्धति से उत्पादित खाद्यान्न, सब्जी, फल, दूध अनाज रासायनिक पद्धति से उत्पादित अनाज से गुणवत्ता में दो प्रकार से बेहतर होता है : पहला जैविक पद्धति से उत्पादित Read more…

कृषि विष श्रृंखला : –

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के सर्वे पर हमने यह जाना की भौतिक विकास की दौड़ में खान पान के विषय पर जागरूकता अत्यंत कम हो गयी है। ग्रामीण समाज में किसी भी परिवार से पूछो, कि रोज आपका भोजन क्या Read more…

रोग चिंतन : –

जीवाणु :- यह सूक्ष्मजीव बीज, फसल अवशेष, मिट्टी के माध्यम से फैल सकते हैं। इनसे होने वाला रोगों में पती धब्बा, अंगमारी, विल्ट (उकठा), कैंकर आदि रोग प्रमुख हैं। फफूंद :- पौधों में होने वाले रोग में फफूंद सबसे ज्यादा Read more…

केंचुआ खाद : –

केंचुआ किसानों का मित्र तथा भूमि का आंत कहा जाता हैं। यह जैविक पदार्थ, ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलता है। जिससे जमीन पोली होती है व हवा का आगमन बढ़ जाता है Read more…

कुछ लाभकारी सूक्ष्मजीव : –

प्रोटोजोआ :-  यह एककोशिकीय सूक्ष्मदर्शी जीव जड़ क्षेत्र में पाए जाते हैं। यह नाइट्रोजन और अन्य तत्व उपलब्ध कराते है। फफूंद :- यह बहुकोशीय और इनमें कवक जल तंतु युक्त, पर्णहरित हिन एवं बीजाणु बनाने वाले मृतजीवी, परजीवी, सहजीवी जीव Read more…

फसलों का परागण : –  

स्वपरागित फसलें :- जब किसी पौधे को एक फूल के पुंकेसर उसी पौधे के फूल के स्त्रीकेसर को निषेचित करते हैं तो यह स्व परागण कहलाता हैं। जैसे :- गेहूँ, चावल, चना, मूंग, उर्द, अरहर, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, तिल, अलसी Read more…

जैविक प्रमाणीकरण : –

जैविक कृषि का महत्व विश्वस्तर पर तीव्र गति से बढ़ रहा है। जैसे–जैसे उपभोक्ता की और से जैविक उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। वैसे–वैसे जैविक उत्पादों की विश्वनीयता पर भी प्रश्न किये जा रहे हैं। विदेशों में जैविक Read more…

पादप शरीर चिंतन : –

पौधों के शारीरिक अवयवों के बारे में सामान्य जानकारी : – जड़ :- पौधे का वह भाग जो मुलांकर से विकसित होकर भूमि के अंदर प्रकाश के विपरीत बढ़ता है, जड़ कहलाता है। यह मिट्टी को बाँधने का कार्य करती Read more…

किसान समूह : –

हमारा देश गाँवों में बसता हैं। आज अधिकांश गाँवों में युवा शक्ति के सद्कार्य के लिए संगठन का अभाव होने से प्रतिकूल परिणाम दिखाई पड़ रहे हैं। अधिकांश गाँवों में उमंग और उत्साह कम हो गये है। देश अधिकतर युवा Read more…

भूमि चिंतन : –

भूमि :- हमारे शरीर निर्माण पंच तत्वों में एक तत्व भूमि है। अनंत जीवन का आत्मा ही भूमि है। मिट्टी के बिना विश्व में किसी भी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, इसलिए हमारे देश में भूमि को Read more…

बीज चिंतन: –

बीज एक ऐसा पादप भाग है जिसका उपयोग बोने के लिए किया जाता हैं, जिसमें उस पादप की संतति तैयार होती है बीज कहलाता हैं। पुरानी कहावत है जैसा बोवोगे, वैसा काटोगे।   स्वस्थ बीज – स्वस्थ वनस्पति – स्वस्थ Read more…

पशुपालन चिंतन: –

पशुओं और मनुष्यों का साथ आज से लगभग 12 से 14 हजार वर्ष पूर्व शुरू हुआ। इस काल में श्वान, भेड़, बकरी और शुकर पालन के प्रमाण मिलते हैं। 5 से 6 हजार वर्ष पूर्व घोड़ों/गधों का उपयोग माँस और Read more…

वृक्ष चिंतन:-

किसान मित्रों, वृक्ष प्रकृति के सहअस्तित्व के घटकों में महत्वपूर्ण घटक है। इसके बारे में हमारे प्राचीन ग्रंथ अथर्ववेद के पृथ्वीसूक्त में कहा गया है कि वृक्ष और वनसपति, मनुष्यों कि तरह ही पृथ्वी का पुत्र हैं। हमारे देश मे Read more…

विविधता युक्त खेती : –

खेजड़ी उगाना :- रेगिस्तान की जमीन में संकरित बेर एवं संकरित खेजड़ी उगाएँ, 4 वर्ष बाद फल देंगे। खेत की सीमा पर लसुड़ा (गुंदा) उगाए, यदि बीच में हल जोतना है तो बीघा में खेजड़ी के 64 पेड़ अन्यथा 100 Read more…

फसल चक्र : –

खेती लम्बे समय तक चलने वाला उधोग है जिसमें जमीन फैक्टरी है जीवाणु कर्मचारी है खाद आदान और फसल उत्पाद है यह है आज के मशीनी युग में समझाने वाली परिभाषा, असली परिभाषा है जो प्रकृति ने बनाई है। अर्थात Read more…

वर्षा जल क्यों महत्वपूर्ण है ?

वर्षा जल सर्वोतम होता है क्योकि यह शुद्ध होता है और सभी सामाजिक, राजनैतिक नियम और बंधनों से मुक्त होता है । वर्षा का जल पेड़,पौधों और फसलों के लिए वरदान के समान होता है क्योकि यह न ही सिर्फ Read more…

प्राकृतिक खेती:-

देश में आज अनेक स्थानों पर किसानों की आत्म हत्या का समाचार सुनने को, पढ़ने को मिलता है। इसके पीछे कारण किसान का कर्ज में डूबना है। कर्ज का कारण हमारी खेती में ट्रेक्टर, डीजल, बीज, खाद आदि बाजार से Read more…

फलों का रोग एवं कीट निदान : –

केला में एन्थ्रेकनोज :- इस रोग से फल सिकुड़कर सूख जाता है। आम तथा बेर में एन्थ्रेकनोज :- यह रोग नव पल्लवों, पुष्पों को प्रभावित करता है। इससे प्रभावित टहनियाँ सूखने लगती हैं। पाउडरी मिल्ड्यू या सफेद चूर्णी रोग :- Read more…

फसलों के प्रमूख कीट:-

दीमक :- सुखी जमीन पर अधिक प्रकोप दिखता, तथा जडों को नुकसान पहुंचाते हैं। वृक्षों के तनों पर बोर्डों पेस्ट लगाने से इसका नियंत्रण होता है। खेत में जैविक कार्बन अधिक हो तो इसका प्रकोप कम होता है मेटरिजियम, बेवेरिया Read more…

दशपर्णी अर्क तथा कीटनाशक:-

जिन पतियों से कीटनाशक बनाया जाता है, कैसे पहचानेंगे उन पौधों को? बकरी पर ध्यान दें, कौन सी पतियाँ बड़े चाव से खा रही और किसे एकदम ही नहीं छूती। वह सारे पौधे बहुत अच्छी कीटनाशक के रूप में बन Read more…

कीटो को भ्रमित करने तथा उन्हें फांसने के उपाय:-

फेरोमोन ट्रैप (गंध फाश):- फेरोमोन एक प्रकार का जैविक पदार्थ है। 2 मीटर बाँस को खेत में 4 से 5 जगह प्रति एकड़ के हिसाब से गाड़ दिया जाता है। ट्रैप को लगभग फसल से 1-2 फूट पर रखे। क्योंकि Read more…

खरपतवार:-

खरपतवार :- किसान खरपतवार (घास) से बहुत ही ज्यादा परेसान है, क्योंकि जैविक में आप हर्वीसाईड (खरपतवारनाशी) का स्प्रे नहीं कर सकते, और करना भी नहीं चाहिए | मोथा, दुबघास, पत्थरचट्टा, गाजर घास, बथुआ आदि खरपतवार के मुख्य उदाहरण हैं Read more…

हरा चारा, मेढ़ के वृक्ष:-

सुबबूल (ल्यूसिना) :-यह एक सस्ता एवं गाय के लिए एक स्वादिष्ट चारा है। जब पौधे 1.5 मीटर के हो जाएँ तो जमीन से 30 सेमी छोड़कर चारा काट लिया जाता हैं। सहजन / मुनगा / सुरजन :-  यह मनुष्य, पशु, Read more…

जैविक खेती मे खाद-प्रबंधन:-

कुनापजल, अमृत जल, जीवामृत, सजीव जल, सस्यगव्य मे से कोई एक का चुनाव करना है। सजीव जल, जीवामृत, सस्यगव्य और कुनापजल को प्रयोग मे लाने से, फसल वृदिक बनाने की आवश्क्ता नहीं। परंतु अमृत जल प्रयोग मे लाने से प्रोटीन Read more…

पंचगव्य :-

किसान भाइयों को परम्परागत कृषि को अपनाना होगा तभी आने वाली पीढ़ी को एक सुखद और खुशहाल जीवन मिल पाएगा। प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। सदियों से विभिन्न प्रकार के उर्वरक उपयोग होते Read more…

सही फसल का चुनाव करें:-

किसान भाइयों, जैसा कि आप सभी जानते हैं, एक व्यापारी जब अपना व्यवसाय शुरू करता है, तो व्यवसाय शुरू करने से पहले वह काफी सोच-विचार कर व्यापार में कदम रखता है। तो आप क्यों नहीं कर सकते? इसी तरह आपको Read more…

अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी को समझें:-

ऑर्गेनिक खेती से पहले किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु और फसल के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए, क्योंकि हर जगह की जलवायु, हर जगह की जमीन अलग होती है।  जैविक खेती शुरू करने से पहले अपनी मिट्टी का Read more…

मिश्रित खेती के लाभ :-

जब एक ही समय में एक ही खेत पर कई फसलें एक साथ बोई तथा उगायी जाती हैं इसे मिश्रित खेती कहते हैं| मिश्रित खेती विभिन्न पौधों के संरक्षण में मददगार होती इससे मिट्टी के स्वास्थ्य/गुणवत्ता में सुधार होता है| Read more…

केंचुआ किसान का मित्र क्यों?

जैविक खेती में पोषक तत्वों को उपलब्ध कराने तथा मिट्टी को भुरभुरी बनाकर, हवा का संवहन बढ़ाने में केंचुआ का महत्वपूर्ण योगदान होता है| मुख्यतः केंचुओं को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है जैविक कचरा खाने वाले तथा मिट्टी Read more…

जैविक खेती कैस करें :-

जैविक खेती को देशी खेती भी कहा जाता है। मुख्य रूप से organic farming प्रकृति एवं पर्यवरण को संतुलित रखते हुए की जाती है। इसके अंतर्गत फसलों के उत्पादन मे रासायनिक खाद कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके Read more…

एमिनो एसिड से मिट्टी में सुधार कर सकते हैं?

मृदा समुच्चय के गठन को बढ़ावा देना: मृदा समुच्चय मृदा संरचना की मूल इकाइयाँ हैं। अमीनो एसिड का उपयोग मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों को बहुत अधिक नमक सामग्री, बहुत मजबूत क्षारीयता, मिट्टी के कणों के उच्च फैलाव और खराब Read more…

ह्यूमिक एसिड के लाभ:-

इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके। ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है। पौधों की तृतीयक Read more…

Fulvic acid (फुलविक एसिड):-

फुल्विक एसिड सेल डिवीजन और बढ़ाव को बढ़ाता है, रूट फसलों को स्पष्ट लाभ के लिए रूट ग्रोथ को बढ़ाता है. फुलविक एसिड मिट्टी में प्रदूषकों को डिटॉक्सिफ़ाई कर सकता है, जहर को अवशोषित कर सकता है और विषाक्त पदार्थों Read more…

एमिनो एसिड से मिट्टी में सुधार कर सकते हैं?

मृदा समुच्चय के गठन को बढ़ावा देना: मृदा समुच्चय मृदा संरचना की मूल इकाइयाँ हैं। अमीनो एसिड का उपयोग मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों को बहुत अधिक नमक सामग्री, बहुत मजबूत क्षारीयता, मिट्टी के कणों के उच्च फैलाव और खराब Read more…

जैविक खेती के प्रकार :-

देशी खेती:- इसमें देशी जड़ीबूटियों के साथ देशी गाय के गोबर से बने खाद के अलावा मटका खाद और जीवामृत का भी प्रयोग होता है! कुदरती खेती:- यह खेती संपूर्ण प्राकृतिक रूप से की जाती है। खेत में एक ही Read more…

जैविक खेती का उद्देश:-

स्वस्थ और पौष्टिक भोजन का लगातार और पर्याप्त उत्पादन। फसलों को इस तरह से उगाना कि फसलों के विकास को उनके सहज व्यवहार और परिस्थितियों में हस्तक्षेप किए बिना बनाए रखा जाए।  प्रदूषण, मिट्टी के कटाव और मिट्टी के क्षरण Read more…

जैविक खेती का पर्यावरण की दृष्टि से लाभ :-

भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है। मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन Read more…

जैविक खेती का किसानों की दृष्टि से लाभ:-

भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है। फसलों की उत्पादकता में वृद्धि। बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की Read more…

जैविक खेती से लाभ :-

जैविक खेती करने से अनेक लाभ हैं। आजकल रासायनिक उर्वरकों की सहायता से उत्पादित उत्पादों के साइडइफेक्ट को देखते हुए यदि हम आंकलन करें तो जैविक खेती के लाभ ही लाभ दिखाई देते हैं। (1) जैविक किसान संश्लिष्ट रसायनों का प्रयोग नहीं Read more…

जैविक खेती :-

जैविक खेती, कृषि की एक ऐसी विधि है जिसके अंतर्गत संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों का उपयोग निम्नतम किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। इस कृषि में फ़सल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।”प्राचीन Read more…

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग मे सावधानियाँ :-

ट्राइकोडर्मा कल्चर की समय सीमा एक साल का होता है इसलिए ख़रीदारी के समय यह ध्यान रखिए । ट्राइकोडर्मा के गुणन के लिए प्रायप्त नमी होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है । ट्राइकोडर्मा कल्चर का उपयोग करते समय किसी भी Read more…

मेटारिजियम के प्रयोग में सावधानियाँ :-

1. सूक्ष्मजीवियों पर आधारित पेस्टीसाइड्स पर सूर्य की पराबैगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों का विपरीत प्रभाव पड़ता है, अतः इनका प्रयोग संध्या काल में करना चाहिए| 2. सूक्ष्म-जैविकों के बहुगुणन के लिए (विशेषकर कीटनाशक फफूदी के लिए) प्रयाप्त नमी और तापमान होना आवश्यक होता Read more…

मेटाराइजियम का उपयोग छिड़काव में :-

 मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग ना सिर्फ मिट्टी के उपचार मे बल्कि विभिन्न उपर्युक्त कीटों की रोकथाम के लिए भी किया जाता है | इन कीटों से बचाव के लिए मेटाराइजियम एनीसोप्ली खड़ी फसल में प्रयोग किया जाता है | इसके Read more…

मेटारिजियम का उपयोग मिटटी उपचार मे:-

 इसका प्रयोग मिट्टी उपचार में भी किया जा सकता है, सबसे पहले 1 किलोग्राम मेटरिजियम को 100 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाकर रखें | इसके बाद खेत की जुताई आदि करके खेत तैयार कर लें Read more…

मेटाराइजियम की उपयोग:-

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग सफेद लट (बीटल), ग्रब्स, दीमक, सुन्डियों, सेमीलूपर, कटवर्म, पाइरिल्ला, मिलीबग और मॉहूं इत्यादि की रोकथाम के लिए मुख्यतयः गन्ना, कपास, मूंगफली, मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, आलू, सोयाबीन, नीबू वर्गीय फलों एवं विभिन्न सब्जियों में किया जाता Read more…

मेटाराइजियम की क्रियाविधि :-

जब मेटाराइजियम एनीसोप्ली के बीजाणु जैसे ही कीट के संपर्क में आते हैं, तो उनके आवरण से चिपक जाते हैं एवं एक उचित तापमान और आर्द्धता होने पर बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं| इनकी अंकुरण नलिका कीटों के श्वसन छिद्रों Read more…

मेटाराइजियम:-

मेटाराइजियम एनिसोप्ली फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली 1 प्रतिशत डब्लू पी और 1.15 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है| मेटाराइजियम एनिसोप्ली, को पहले एंटोमोफ्थोरा एनीसोप्ली कहा जाता था| यह मिट्टी में स्वतंत्र रूप से पाया Read more…

ट्राइकोडर्मा का प्रयोग मृदा उपचार मे :-

ट्राइकोडर्मा का उपयोग मृदा उपचार मे किया जाता है इसके लिए 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद मे मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे बोरे से ढक दीजिये। करीब एक सप्ताह Read more…

पानी मे ट्राइकोडर्मा को कैसे मिलाएँ :-

200 लीटर पानी मे 2-3 किलोग्राम गुड ले लीजिये एवं उसमे 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा मिला लीजिये। 1 सप्ताह के बाद इस मिश्रण का रंग मटमैला होने लगता है एवं इस मिश्रण के ऊपर हमेशा छोटे -छोटे बुलबुले बनने लगते हैं। Read more…

सड़े हुए गोबर खाद मे ट्राइकोडर्मा की तैयारी :-

50-70 किलोग्राम सड़े हुए गोबर के खाद या कोंपोस्ट मे 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला दीजिये। इस मिश्रण को किसी छायादार जगह या पेड़ के नीचे एक गीले बोरे से ढ़क दीजिये ताकि इसमे एक सप्ताह तक नमी बना रहे Read more…

ट्राइकोडर्मा के फायदें :-

ट्राइकोडर्मा हमारे फसल को मृदा जनित और बीज जनित रोगो से बचाता है । यह रोगकारक सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकता है एवं उन्हे मारकर पौधों को रोगो से बचाता है । यह पौधों मे अंटिओक्सीडेंट गतिविधियों को बढ़ाने Read more…

ट्राइकोडर्मा का प्रयोग क्यों करें :-

आज-कल हमलोग खेतों मे उत्पादन की पैदावार को बढ़ाने के चक्कर मे काफी ज्यादा मात्रा मे रासायनिक खादों का उपयोग करते हैं ,जिसके कारण हमारी खेतों की उर्वरक शक्ति काफी ज्यादा मात्रा मे कम हो गयी है। इसके अलावा खेतों Read more…

ट्राइकोडर्मा कैसे काम करता है :-

ट्राइकोडर्मा मिट्टी मे जाने के बाद अपने कवको को एक जाल के जैसे फैला देता है एवं पौधे के जड़ों के क्षेत्र मे कवक का जाल बना देता है । इसके कारण मिट्टी मे उपस्थित अन्य हानिकारक कवक और बैक्टीरिया Read more…

ट्राइकोडर्मा:-

ट्राइकोडर्मा एक मृतजीवी कवक है , जो मिट्टी और कार्बनिक अवशेषों पर पाया जाता है । यह एक जैव-फफूंदनाशी है एवं विभिन प्रकार की कवकजनित बीमारियों से पौधे को बचाने मे मदद करता है। इसकी दो प्रजातियाँ होती है :- Read more…

भेड़ अथवा बकरी लेंडी की खाद :-

औसतन इस खाद में 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 2 प्रतिशत पोटॉश की मात्रा होती है। पके खाद को चूरा कर बोनी के समय देने पर अथवा पौधे के पास देने से उत्तम परिणाम मिलते है। फसल की Read more…

पशु समाधि खाद :-

प्राकृतिक रूप से मृत गाय/बैल / अन्य पशु के शरीर को खेत के किसी हिस्से में वांछित लंबाई, चौड़ाई एवं गहराई के गड्ढे में रख देते है। इस गड्ढे में मृत शरीर पर 7 किलो चूना तथा 10 किलो खड़ा Read more…

इल्ली नियंत्रण के तरीके:-

5 लीटर देशी गाय के मूत्र में 5 किलो नीम के पत्ते डालकर 10 दिन तक सड़ायें, बाद में नीम की पत्तियों को निचोड़ ले। इस नीमयुक्त मिश्रण को छानकर 150 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से एक Read more…

दूध से बीजोपचार

400 ग्राम टमाटर के बीज को एक कपड़े में बाँधकर छोटी थैली जैसे बनाना बनाने के बाद 425 मि.लि. पानी में 75 मि. लि. दूध मिला लीजिये। उसके बाद इस घोल को 6 घण्टे भिगोके रखना चाहिए 6 घण्टे के Read more…

पारंपरिक बीज तैयार करना

पारंपरिक बीज तैयार करने के लिए सबसे पहले अपने खेतों की फसल में अच्छा उत्पाद देने वाली फसल संग्रहण कीजिये और उसके बाद प्राकृतिक तरीकों से गुणवत्ता युक्त बीज तैयार किजिये ताकि स्वावलम्बी बीज से कंपनियों के महगे बीजों से Read more…

रोग-कीट युक्त बीज व खरपतवार के बीजों को अलग करना:-

कई रोग बीज के कारण ही फैलते हैं जैसे गेहूं से कंदुआ रोग, इसी प्रकार कई बार बीजों को कीटों द्वारा क्षति हो जाती है। खरपतवार के बीज भी फसल के बीज के साथ मिले होते है। इन सभी तरह Read more…

जैविक बीज उत्पादन भण्डारण व उपचार:आत्मनिर्भरखेती का पहला कदम:-

खेती की शुरूआत बीज से होती है और बीज पर ही समाप्त होती है (बीज ही बोया जाता है और बीज ही उत्पादित होता है) अर्थात बीज खेती का सबसे महत्वपूर्ण आधार है यदि बीज उत्तम है तो जुताई, सिंचाई Read more…

क्या होता है ग्रीन हाउस एवं पोली हाउस

ग्रीन हाउस ग्रीन हाउस लोहे के पाइप या लकड़ी से बना ऐसा ढांचा है जो की एक पारदर्शी आवरण से ढंका होता है । जिसमे से सूर्य की किरण जो की पौधे के लिए उपयुक्त पायी जाती है अंदर आ Read more…

कैसे लगाएँ ग्रीन हाउस

एक अछे ग्रीन हाउस के लिए 4000 वर्ग मीटर की जगह  प्रायप्त है । क्यूकि ऐसे ग्रीन हाउस मे हवा का प्रवाह ठीक रहता है । तापमान, अद्रता इत्यादि को नियंत्रित करना आसान होता है । उत्पाद की मात्रा और Read more…

हाइटेक खेती के फायदे

ग्रीन हाउस पर सरकार दे रही 50 से 75 प्रतिशत तक अनुदान :- कृषि से संबंध रखने वाले युवा जो की पहले खेती करना छोडकर नौकरी के लिए शहर की तरफ जाने लगे थे । वो अब कुछ नई तकनीक Read more…

फसल प्रबन्धन

जैसा कि बताया गया है कि यदि पौधों में जल और पोषक तत्वों का संतुलन रखा जाये तो रोग-कीटों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है इसके लिये जैविक खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी है। हमशा चार वर्षीय या अधिक Read more…

बीज उपचार या बीज की बुवाई पूर्व तैयारी

भंडारण के बाद जब बुवाई के लिये बीज बाहर निकाला जाता है तो बीज की अंकुरण क्षमता, रोग-कीट, कीट-खरपतवार रहित करना आदि बहुत आवश्यक है। इसके लिये निम्न उपाय करने चाहिये । अंकुरण परीक्षण:- भंडारण के बाद कितने प्रतिशत बीजों Read more…

कीट नियंत्रक में सहायक वनस्पतियाँ ( part:- 2)

अदरक, लहसुन और मिर्च के घोल एक हेक्टेयर के लिए आवश्यक घोल बनाने के लिए 25 कि.ग्रा. लहसुन, 1.25 कि. ग्रा. अदरक और 1.25 कि. ग्रा. हरी मिर्च को अच्छी तरह से पीस लीजिये । इसके साथ 18 लीटर पानी Read more…

कीट नियंत्रक में सहायक वनस्पतियाँ

निम्बोली का घोल सबसे पहले नीम के बीज को इकट्ठा कर लीजिये और उनके बाहरी छिलको को हटा लीजिये। उसके बाद नीम बीज की गिरी 1 किलो, प्लास्टिक की बाल्टी में 10 लीटर नल का पानी लेकर उसमें इसको मिलाकर Read more…

दीमक नस्ट करने के उपाय :-

दीमक के लिए प्रति एकड़ खेत मे 8-10 पौधे लगाएँ । 2. पानी के बहते धारा मे हिंग को कपड़े मे बांधकर डाले वह घुल – घुल कर फसल के जड़ो मे पहुँच जाएगी । इससे अच्छा रोग नियंत्रण होता Read more…

जीवामृत से भूमि को सजीव बनायें।

जीवामृत बनाने के लिए गोबर गैस से निकलने वाली या गाय-बैल का गोबर एक बीघा के लिए 10 किलो गोबर 5 किलो गाय-बैल का मूत्र 1 किलो गुड़, आधा किलो मिट्टी बढ़ पीपल के नीचे या अपने खेत की मेड़ Read more…

फसलों का प्रमुख कीट

माहू वयस्क और शिशु दोनों पत्तियों के निचले भाग पर झुंड मे रहकर रस चूसते हैं जिसमे पत्तियां पीली पड़ जाती है। पत्तियों पर काली फंफूड उग जाती है । यह किट विषाणु के लिए वाहक कम करता है । Read more…

भूमि शोधन

भूमि शोधन फसल में आने वाली भूमि जनित बीमारी और कीटो से बचाव के लिए किया जाता है । यह जैविक और रासायनिक खेती करने वाले दोनों लोगो के लिए लाभकारी है। क्योकि भूमि जनित रोग दोनों तरह की खेती Read more…