जैसा कि बताया गया है कि यदि पौधों में जल और पोषक तत्वों का संतुलन रखा जाये तो रोग-कीटों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है इसके लिये जैविक खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी है। हमशा चार वर्षीय या अधिक फसल चक्र अपनाना चाहिये ताकि कोई कीट अपने जीवन बनाये रख सके। कई तरह की फसलें जिन्हें यदि मुख्य फसल के बीच में (इंटेर्क्रोपिंग) लिया जाये या मेड पर लगाया जाये तो ये फसले मुख्य फसलों के कीटों को आगे बढ़ने से उन्हें स्वयं की तरफ आकर्षित करती है ताकि मुख्य फसल को नुकसान न हो। कुछ ऐसी भी होती है जो मुख्य फसल के हानिकारक कीटों को नष्ट करने वाले मित्र कीटों को शरण देती है। कपास के फसल के चारों ओर मक्का की फसल लगाने से इस प्रकार का लाभ मिल है। अतः फसल विविधता बनाये रखने से कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है।
पौधे ही पौधे को बचायें
ऊपर दिये गये उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि मुख्य फसल के आसपास उगने वाली (पौधे) मुख्य फसल पर लगने वाले कीटों को नियंत्रित करती हैं इसी का एक दूसरा रूप पौधों से प्राप्त कीट नियंत्रकों का उपयोग करना । कई पौधे जैसे नीम, आक, चतूरा, लहसुन करंज आदि के अर्क या तेल में ऐसे गुण होते है जो हानिकारक कीटों का जीवन चक्र पूरा होने में बाधा कर देते है जैसे नीम के तेल का छिड़काव करने से ना शीर्फ कीटों की लट (लाग) से वयस् बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है साथ ही इनके छिड़काव से फसल के पत्ते-फल आदि का गंध -स्वाद बदल जाने से ना शीर्फ़ जीव फसल को कम खाते हैं और भूखे मर जाते हैं। अतः यह जीवन चक्र टूटने या भूखे मरने से हानिकारक कीटों की संख्या कम होती जाती है। इन पौधों में प्राप्त कीट नियंत्रकों का अच्छा पक्ष यह है कि इनका मानव व अन्य लाभकारी कीटों पर नगण्य असर होता है अतः पूर्णत सुरक्षित है।
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