खेती लम्बे समय तक चलने वाला उधोग है जिसमें जमीन फैक्टरी है जीवाणु कर्मचारी है खाद आदान और फसल उत्पाद है यह है आज के मशीनी युग में समझाने वाली परिभाषा, असली परिभाषा है जो प्रकृति ने बनाई है। अर्थात जंगल (प्रकृति के खेत) में जिस प्रकार उत्पादन होता है उसमें सभी वनस्पतियाँ जीव-जन्तु अपना कार्य करते हैं और हिस्सा पाते है। जंगल के तंत्र में बाहरी आदान न के बराबर होते है और वे आज भी अच्छी तरह चल रहे हैं।

यदि हम जंगल के तंत्र की कुछ बातें खेती में भी अपना लें तो निश्चय ही लम्बे समय तक खेती भी बहुत कम बाधाओं के साथ सफलता से हो सकती हैं।

चार वर्ष का फसल चक्र :-

सभी किसान को अपने पास मौजूद भूमि के चार हिस्से कर इस प्रकार फसल चक्र अपनाना चाहिए की प्रत्येक हिस्सा चौथे वर्ष खाली रहे। अर्थात उसे परती छोड़े और उसमें चारे वाली फसल उगाकर पशुओं को चराए और उनका मल-मूत्र खेत में ही छोड़ दें। इससे जमीन को आराम मिलेगा दलहनी, अदलहनी, औषधीय फसल, घास-पशु के चक्र से उपजाऊपन कई गुना बढ़ जायेगा।


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