फल एवं सब्जियां प्रबंधन : –

सब्जियों एवं फलों की समय पर तुडाई करें अन्यथा वे कड़क एवं बेस्वाद और बदरंगी (दिखने में खराब) हो जाते हैं। इसकी तुड़ाई सुबह या शाम के समय कर। तुड़ाई हेतु कुशल मजदुर होने चाहिए। तुड़ाई के समय कोई कट ना लगे, अन्यथा कीट/फफूंद प्रकोप और हानिकारक पदार्थ एफ्लोटॉक्सिन का Read more…

खलियाँ : –

बीजों से तेल निकालने के बाद बचा ‘भाग, खली कहलाता है। ये खलियां भी जैविक पौध पोषण में सहयोगी होती हैं। खलियों में नाइट्रोजन के अलावा कुछ मात्रा में फॉस्फोरस और पोटॉश भी होता है। इनके जड़ क्षेत्र में उपयोग से मित्र जीवाणु संख्या बढ़ती है। इन्हें 200 किलो प्रति Read more…

भेड़ अथवा बकरी लेंडी की खाद : –

औसतन इस खाद में 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 2 प्रतिशत पोटॉश की मात्रा होती है। पके खाद को चूरा कर बोनी के समय देने पर अथवा पौधे के पास देने से उत्तम परिणाम मिलते है। फसल की आवश्यकता अनुसार इसे 1-3 टन प्रति एकड़ में दिया जा Read more…

प्रेसमड खाद : –

चीनी मिलों से निकले गन्ने के इस अवशेष को प्रेसमड कहते है। इस प्रेसमड को एक महीने तक मटका खाद की मदद से विघटित कर तैयार करें। इस खाद में 1.25 प्रतिशत नाइट्रोजन, 3.8 प्रतिशत फॉस्फोरस, 1.4 प्रतिशत पोटॉश एवं अन्य सूक्ष्ममात्रिक तत्व होते है। फसल आवश्यकतानुसार इसे 10 से Read more…

पशु समाधि खाद : –

प्राकृतिक रूप से मृत गाय/ बैल/ अन्य पशु के शरीर को खेत के किसी हिस्से में वांछित लंबाई, चौड़ाई एवं गहराई के गड्ढे में रख देते है। इस गड्ढे में मृत शरीर पर 7 किलो चूना तथा 10 किलो खड़ा नमक डालकर मिट्टी से एक वर्ष के लिए ढांक देते Read more…

जैविक खेती में मिट्टी परीक्षण के सही मायनें : –

सही मायनों में जैविक खेती में मिट्टी परीक्षण में केवल जैविक/ ऑर्गेनिक कार्बन तथा पी.एच. मान (अम्ल क्षार तुल्यांक) महत्वपूर्ण है जो भूमि की सजीवता अर्थात उर्वरता का आधार है। वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते है कि भूमि उर्वरता का आधार जीवांश पदार्थ ही हैं। मृदा वैज्ञानिकों ने इसे भूमि Read more…

समस्याग्रस्त भूमि : –

आमतौर पर आदर्श भूमि की अम्लीयता क्षारीयता या पी. एच. मान. 6.5-7.5 के मध्य होता है। किसी भूमि में प्राकृतिक चट्टान / बेड रॉक के कारण या अधिक गहराई से पानी निकालकर देने से या सिंचाई जल के असंतुलित उपयोग से भूमि का पी. एच. मान बढ़ता जाता है। जैसे-जैसे Read more…

सिंचाई जल की गुणवत्ता : –

किसान मित्रों,  सिंचाई जल की गुणवत्ता फसलोत्पादन को बहुत प्रभावित करती है। यह जल में विलेय कैल्शियम,  मैग्नीशियम,  सोडियम,  पोटेशियम,  क्लोराइड,  कार्बोनेट आदि लवणों की उपस्थिति पर निर्भर करती है। इन विलेय लवणों के सांद्रण को विद्युत चालकता के रूप में व्यक्त किया जाता है। सिंचाई जल में कुछ तत्वों Read more…

प्रसंस्करण उद्योग : –

हमने यह पाया है कि अनेक जैविक किसान केवल एक फसल जैसे धान,  गेहूँ,  गुड़ आदि की मार्केटिंग तो करते है परन्तु उन्हें बेचने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। यदि किसान प्रोड्यूसर कंपनी / स्वयं सहायता समूह / प्राइवेट लिमिटेड के रूप में संगठित होकर ग्राम स्तर पर Read more…

नर्सरी प्रबंधन : –

कुछ फसलों जैसे धान और कुछ सब्जियों की रोप तैयार कर खेत में लगायी जाती है। मजबूत और निरोगी रोप अच्छे उत्पादन का आधार है। स्वस्थ रोप तैयार करने हेतु आवश्यक बातें : पौधशाला (रोपणी) के लिये स्थान का चयन करते समय ध्यान रखना चाहिये कि वहां सूर्य का प्रकाश Read more…