जब एक ही समय में एक ही खेत पर कई फसलें एक साथ बोई तथा उगायी जाती हैं इसे मिश्रित खेती कहते हैं| मिश्रित खेती विभिन्न पौधों के संरक्षण में मददगार होती इससे मिट्टी के स्वास्थ्य/गुणवत्ता में सुधार होता है| कुल मिलाकर उत्पादकता भी बढ़ती है| मिश्रित खेती फसल की सुरक्षा में मदद करती है, जैसे-खेतों की मेढ़ों पर हल्दी या अदरक उगाने से खेतों में रोग नहीं फैलते हैं| खेतों की मेढ़ पर गेंदा, तुलसी, धनिया इत्यादि लगाने से कीट पतंगें दूर भागते हैं| दलहनी व अदलहनी फसलों का फसल-चक्र अपनाने या मिश्रित खेती करने से जहाँ दलहनी फसल से अदलहनी फसलों को नत्रजन उपलब्ध होता है वहीँ अदलहनी फसल से दलहनी फसलों को फास्फेट, जस्ता, सल्फर आदि प्राप्त होता है| हर एक प्रजाति की इसी फसल के उगाने से खेत में उक्त पोषक तत्व का उपयोग अधिक मात्रा में करती है| बार-बार खेत में इसी फसल को उगाने से खेत में उक्त पोषक तत्व की कमी हो जाती है जिससे उत्पादन घटने के साथ-साथ कई तरह के रोग लगने शुरू हो जाते हैं| जैसे, धान अधिक मात्रा में जस्ते का उपयोग करता है| इसी तरह मक्का अधिक मात्रा में नाइट्रोजन का उपयोग करता है| दलहनी फसलें ताम्बें का उपयोग अधिक करती हैं| बार-बार दलहनी फसल उगाने से खेत में ताम्बें की कमी हो जाती है जिससे उकठा जैसा गंभीर फुफंद रोग लगना शुरू हो जाता है|
विविध फसलें उगाने से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों के भोजन हेतु आवश्यक तत्व नाइट्रोजन. कार्बन तथा प्रोटीन उपलब्ध होता रहता है| जिससे खेत में जैव-रासायनिक प्रक्रियाएं सम्पन्न होती रहती है| जबकि एक ही प्रकार की फसल उगाने से खेत में फसल नाशी कीटों की संख्यां में लगातार वृद्धि होती रहती है| जबकि फसल चक्र, मिश्रित फसल अपनाने से मित्र व शत्रु कीटों के बीच एक संतुलन बना रहता है जिससे शत्रु कीटों का प्रकोप नहीं होता |
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