जैविक खेती का पर्यावरण की दृष्टि से लाभ :-

भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है। मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि अंतरराष्ट्रीय बाजार Read more…

जैविक खेती का किसानों की दृष्टि से लाभ:-

भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है। फसलों की उत्पादकता में वृद्धि। बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है |

जैविक खेती से लाभ :-

जैविक खेती करने से अनेक लाभ हैं। आजकल रासायनिक उर्वरकों की सहायता से उत्पादित उत्पादों के साइडइफेक्ट को देखते हुए यदि हम आंकलन करें तो जैविक खेती के लाभ ही लाभ दिखाई देते हैं। (1) जैविक किसान संश्लिष्ट रसायनों का प्रयोग नहीं करते। ये पेट्रोलियम आधारित होते हैं। पेट्रोलियम एक ग़ैर-नवीनीकृत संसाधन Read more…

जैविक खेती :-

जैविक खेती, कृषि की एक ऐसी विधि है जिसके अंतर्गत संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों का उपयोग निम्नतम किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। इस कृषि में फ़सल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।”प्राचीन काल में मनुष्य के स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्रकृति के Read more…

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग मे सावधानियाँ :-

ट्राइकोडर्मा कल्चर की समय सीमा एक साल का होता है इसलिए ख़रीदारी के समय यह ध्यान रखिए । ट्राइकोडर्मा के गुणन के लिए प्रायप्त नमी होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है । ट्राइकोडर्मा कल्चर का उपयोग करते समय किसी भी प्रकार का रासायनिक या कवकनाशी रसायनों का उपयोग कदापि न Read more…

मेटारिजियम के प्रयोग में सावधानियाँ :-

1. सूक्ष्मजीवियों पर आधारित पेस्टीसाइड्स पर सूर्य की पराबैगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों का विपरीत प्रभाव पड़ता है, अतः इनका प्रयोग संध्या काल में करना चाहिए| 2. सूक्ष्म-जैविकों के बहुगुणन के लिए (विशेषकर कीटनाशक फफूदी के लिए) प्रयाप्त नमी और तापमान होना आवश्यक होता है| 3. सूक्ष्म-जैविक रोकथाम में आवश्यक कीड़ों की संख्या एक सीमा Read more…

मेटाराइजियम का उपयोग छिड़काव में :-

 मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग ना सिर्फ मिट्टी के उपचार मे बल्कि विभिन्न उपर्युक्त कीटों की रोकथाम के लिए भी किया जाता है | इन कीटों से बचाव के लिए मेटाराइजियम एनीसोप्ली खड़ी फसल में प्रयोग किया जाता है | इसके लिए 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी Read more…

मेटारिजियम का उपयोग मिटटी उपचार मे:-

 इसका प्रयोग मिट्टी उपचार में भी किया जा सकता है, सबसे पहले 1 किलोग्राम मेटरिजियम को 100 किलोग्राम पकी हुई गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाकर रखें | इसके बाद खेत की जुताई आदि करके खेत तैयार कर लें | इसके बाद तैयार की गयी 100 किलोग्राम गोबर की Read more…

मेटाराइजियम की उपयोग:-

मेटाराइजियम एनीसोप्ली का प्रयोग सफेद लट (बीटल), ग्रब्स, दीमक, सुन्डियों, सेमीलूपर, कटवर्म, पाइरिल्ला, मिलीबग और मॉहूं इत्यादि की रोकथाम के लिए मुख्यतयः गन्ना, कपास, मूंगफली, मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, आलू, सोयाबीन, नीबू वर्गीय फलों एवं विभिन्न सब्जियों में किया जाता है|