ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के सर्वे पर हमने यह जाना की भौतिक विकास की दौड़ में खान पान के विषय पर जागरूकता अत्यंत कम हो गयी है। ग्रामीण समाज में किसी भी परिवार से पूछो, कि रोज आपका भोजन क्या है तो पता चलता है कि मुख्य आहार रोटी, बाटी या चावल जो दाल या चटनी, प्याज या मिर्च के साथ खा लेते हैं। फल सब्जी तो सप्ताह में कभी कभार ही खाते हैं, वह भी मोल लेकर। तेल के रूप में बाजार से खरीदे गए कपास्या/सोयाबीन आदि का उपयोग होता है। सब्जी उगाने वाला, स्वयं रोजाना सब्जी नहीं खाता है। अच्छे क्वालिटी का उत्पाद (गेहूँ/चावल आदि) होगा, तो वह बाजार में बिक जाता है और हल्की क्वालिटी का घर खाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। अनेक गाँव में दोपहर को दूध नही मिलता है। दुनिया को खिलाने वाला अन्नदाता किसान स्वयं के अन्न की कम चिंता करता है।
फिर बार बार यही प्रश्न मन में उठता है कि खेती किसलिए नोट कमाने के लिए या स्वस्थ जीवन जीने के लिए करते है ? हम नोट तो खाकर जिंदा तो नहीं रह सकते हैं।
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